ಭಾನುವಾರ, ಸೆಪ್ಟೆಂಬರ್ 23, 2012

दैनिक सुविचारसाधारण काल का पंचीसवां रविवार B 23-09-12 विशय:सेवा करने वाला सेवक

दैनिक सुविचार

साधारण काल का पंचीसवां रविवार B 23-09-12
विशय:सेवा करने वाला सेवक
प्रग्या ग्रंथ में से पहला पाठ 2:12,17-20 धर्मात्मा पर अत्याचार/
दूसरा पाठ संत याकूब के पत्र में से 3:16-4:3 धनियों को चेतावनी/
संत मार्कुस के ग्रंथ में से सुसमाचार 9:30-37 दुःखभोग ऒर पुनरुथान की दूसरी भविष्यवाणी/ स्वर्गराज्य में प्रथम कॊन?
ईसा मसीह ने इस संसार में इस लिए जन्म लिया कि वे हमें एक नया जीवन दे सकें/
उनकी यह सॊच ने संसार की दिशा ही बलल गई हॆ/
ईसा का सांसारिक जीवान एक अद्भुत नमूना था/ उनकी शिक्षा लोगों मे एक नई सोच लेकर आई/
ईसा ने न केवल लोगों को शिक्षाही दी बल्की उन्की पीडा को मिठाया, उनको खाना खिलाया, उनकी समस्या को समझकर उसका समादान ढूंडा/
अनेक लोगों को उनके इस प्रकार की नई सोच ने सोचने के लिए बाद्य किया/
कईयों ने उनका विरोधकिया ऒर उनको मिठाने के का रास्ता ढूंढने लगे/
कई बार उनकी शिक्षा से लोगों पर प्रभाव आया  कि वे उस गांव में रहें तो लोगों का सोच ही बदल सकाता था/
इस कारण कई नेतावों ने उन्हें उनके गांव से चले जाने की आग्या दी/
कई बार लोगों की भावन देख कर ईसा दुःखि हुआ करते थे/
उनके शिष्य भी कई बार उनकी शिक्षा से परहेज किया करते थे/
उनकी गलत फेहमी यह थी कि एक दिन इसा बडे राज्य की स्थापना करेंगे ऒर वे उसमे कोई ना कोई मंत्री का पद पायेंगे/
एक दिन इसी संदर्भ को जान कर प्रभुने उनके शिष्यों से पूछाकि वे किस बात की चर्चा कर रहे थे?
वे चुप रहे, तो ईसाने एक बालक को उनके बीच रख कर काहा कि उन्हें इस बालक के समान खुले दिल के बनना हॆ/
हम हर रविवार को चर्च जाते जहां पर हमें तीन पाठोंको सुनाया जाता/
आज के तीन पाठ प्रग्या ग्रंथ, संत याकूब के पत्र, ऒर संत मार्कुस के सुसमाचार में से लिया गया हॆ/
जहां पर हमें सांसारिक जीवन मे हमें जो कठिनाइयां आती हॆं उनसे किस प्रकार से संघर्ष करना इस बात को समझाया जाता हॆ/
पहले पाठ में प्रग्या ग्रंथ में लिखा गया हॆ कि धर्मात्मा पर किस प्रकार से अत्याचार होता हॆ/
अत्याचार करने वाले हमेशा सचाई के प्रति अपना बेडा उठाये रखते कि, उनकी सोच लोगों तक जाये/
बुराई से वे प्रेरणा पाते, अच्छाई से मुंह मोड लेते ताकि चंद दिनों की खुशी के लिए वे सच्छाई का गला घोंट सकें/
अनेक बार संसार में ऎसा होता/
हम निरीह द्र्ष्टाओं के समान हतप्रभ लोगों के समान खडे खडे देख चुप हो जाते/
आज के पाठ से हमें साहसी बन कर सच्चई का साथ देना चाहिए/
दूसरे पाठ में संत याकूब हमें सिखाते कि कॆसे धनियों के विरूध्द कभी न कभी हादसा हो सकता/.
हम सब को स्वार्थ त्याग कर अच्चे लोगों का साथ देना चाहिए/
अनेक बार ईर्शा के कारण अनेक गलतियों के कारण मानव जीवन सक्ते मे पड जाता हे/
आज का दूसरा पाठ हमें सचेत करता कि हम अपने आस पास के समाज में निर्धनों पर अत्याचार होने से रोकना चाहिए/
कई बार खिस्तीय समुदाय में ईर्षा के कारण अनेक पक्षपात की समस्यायें शुरू होती हॆं/
जब अमीर गरीबों पर अत्याचार करने का प्रयास करेंगे तब हम विश्वासियों को इस का डटकर विरोध करना चाहिए/
आज कल का युग अनेक प्रकार की सेवायें होती हॆं/
रजनितिक लोग सेवाके नाम पर लोगों का शोषण कर लोगों को लूटते/
वित्तीय आगेवान लोग आपनी प्रकार के सोच को आगे बडाने के लिए किसीभी प्रकार के हथकंडे अपना कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते/
पर ईसा का सेवा का सोच बिल्कुल अलग हॆ/
वे निस्वार्थ सेवा का जिक्र हमेशा किया करते थे/
वे हमेशा अपनी शिक्षा के लिऎ अपने आप को लोगों को एक नमूना के रूप में पेश करना चाहते थे/
ईसा ने अपने शिष्यों से कहा कि वे एक छोटे से बालक के समान बने/
क्योंकि एक नन्हा बालक निश्चल भावना, उसका व्यवहार स्वाभाविक, सरल ऒर संवेदना पूर्वक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता हॆ/
उनके शिष्य हमेंशा यही सोचा करते थे कि कब ईसा अपने राज्य की स्थापना करें ऒर वे कब एक अच्छासा पद लेलें/
ऎसे विचार उनमें आपस में बात चीत के विशय का आधार होता था/
ईसा अपने  शिश्व्यों के स्वभाव से खूब अच्छी तरह से परिचित थे/
इसी लिऎ वे अपने शिष्यों से पूछते कि क्या चर्चा होरही थी रास्ते की यात्रा के समय?
शिष्यों की चुप्पी ने ईसा को एक ऒर मॊका दिया कि किस प्रकार से उन्हें इस संसार में मुख्य स्थान का चयन न कर्ना चाहिए/
जो आखरी जगह चाहेगा उसे प्रमुख जगह मिलेगी/
जॆसा मां मरियम ने काहा मुझ तुच्छ दासी को महान जगह दी गई हे/
आज हम सब को जाग्रत होना चाहिए कि किस प्रकार से इस संसार में अपने विश्वास के किरण को लोगों तक पहुंचाना चाहिए/
आपका हितॆषी
फादर जुजे वास एस.वि.डी.

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